महाकुंभ भारत का एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह आयोजन 12 वर्षों में एक बार चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक—में होता है। महाकुंभ का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है और यह गंगा, यमुना, क्षिप्रा और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों के किनारे होता है। महाकुंभ का महत्व: आध्यात्मिक महत्व: ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताएं: यह आयोजन समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है, जिसमें अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं थीं—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इसी के प्रतीक रूप में यह आयोजन होता है। संस्कृति और परंपरा: महाकुंभ भारतीय संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक एकता का प्रतीक है। इसमें साधु-संत, अखाड़ों और तीर्थयात्रियों का मिलन होता है। आयोजन की विशेषताएं: पवित्र स्नान: प्रमुख तिथियों पर लाखों श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान करते हैं। साधु-संतों का जमावड़ा: महाकुंभ में विभिन्न अखाड़ों के नागा साधु, संत और त...
इस सावन की शिवरात्रि 2025 में क्या खास है? (हिंदी में जानकारी) --- 🗓️ तारीख: 24 जुलाई 2025 (गुरुवार) 🔱 अवसर: सावन शिवरात्रि (श्रावण मास की मासिक शिवरात्रि) --- 🔰 इस सावन की शिवरात्रि क्यों है खास? 1. 🌿 सावन मास में शिवरात्रि का विशेष महत्व: सावन मास खुद में भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। ऐसे में इस मास की शिवरात्रि का पुण्य और प्रभाव 100 गुना अधिक माना जाता है। 2. 🌙 मासिक शिवरात्रियों में सर्वश्रेष्ठ: हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि होती है, लेकिन सावन की शिवरात्रि को सबसे पवित्र और फलदायी माना गया है। 3. 🔱 जलाभिषेक और रुद्राभिषेक का महा फल: इस दिन अगर शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, गंगाजल और बेलपत्र से अभिषेक किया जाए, तो जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं — खासकर रोग, कर्ज और वैवाहिक बाधा। 4. 🌌 विशेष योग और तिथि संयोग: इस साल की सावन शिवरात्रि पर यदि कोई शुभ योग (जैसे शिव योग, सिद्धि योग या पुष्य नक्षत्र) बनता है, तो यह दिन और भी विशेष बन जाएगा। (अभी के अनुसार पंचांग अनुसार शुभ मुहूर्त बन रहा है) 5. 🧘♂️ मनोकामना पूर्ति का उत्तम दिन: जो लोग शिवजी से कोई खास ...
परिचय: राजा भागीरथ प्राचीन भारत के एक महान और तपस्वी राजा थे, जिनका उल्लेख पुराणों और रामायण में मिलता है। वे इक्ष्वाकु वंश के राजा थे और राजा सगर के वंशज थे। उनका सबसे बड़ा कार्य था — गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर लाना, जिससे उनके पूर्वजों का उद्धार हो सके। --- भागीरथ की कथा: बहुत समय पहले राजा सगर ने एक यज्ञ किया था। उनके 60,000 पुत्र यज्ञ के अश्व (घोड़े) की तलाश में धरती से पाताल तक खोज करते गए। उन्हें वह घोड़ा ऋषि कपिल के आश्रम में मिला। उन्होंने समझे बिना ऋषि कपिल को दोषी ठहराया, जिससे ऋषि क्रोधित हो गए और सभी 60,000 पुत्र भस्म हो गए। इनके उद्धार के लिए यह आवश्यक था कि गंगा जल से उनका तर्पण किया जाए, लेकिन गंगा तब तक स्वर्ग में थी। कई पीढ़ियाँ बीत गईं, लेकिन किसी में इतना बल नहीं था कि वह गंगा को पृथ्वी पर ला सके। तब भागीरथ ने कठोर तप किया, ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने कहा कि गंगा का वेग धरती सहन नहीं कर सकती, इसलिए शिवजी को उसे अपनी जटाओं में धारण करना होगा। भागीरथ ने फिर शिवजी की तपस्या की। शिवजी प्रसन्न हुए और गंगा को अपनी जटाओं में समेट लिया, फिर धीरे-धीरे उसे धरत...
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